PM मोदी का साइप्रस दौरा केवल एक औपचारिक यात्रा नहीं थी, बल्कि इसमें छिपा था एक बहुत बड़ा कूटनीतिक संदेश — खासतौर पर तुर्की के लिए। हम विस्तार से जानेंगे कि इस दौरे का रणनीतिक महत्व क्या है, साइप्रस और तुर्की के बीच क्या विवाद है, और कैसे भारत ने इस दौरे के जरिए अपना वैश्विक रुख मज़बूत किया।
पीएम मोदी को मिला साइप्रस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
साइप्रस के राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘Grand Cross of the Order of Makarios III’ से सम्मानित किया गया। यह साइप्रस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो अब तक भारत के प्रधानमंत्री को पहली बार मिला है। यह न सिर्फ मोदी जी की उपलब्धि है, बल्कि भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा का भी प्रतीक है।
अब तक 22 देशों ने पीएम मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा है, जिनमें सऊदी अरब, यूएई, फ्रांस, रूस और मिस्र जैसे देश शामिल हैं।
सांस्कृतिक कूटनीति: भारत से ले गए खास तोहफे
प्रधानमंत्री मोदी ने सांस्कृतिक कूटनीति के तहत साइप्रस के राष्ट्रपति को कश्मीरी रेशम का कालीन भेंट किया। यह कालीन लाल और भूरे रंग की बॉर्डर के साथ ऐसी बुनावट में तैयार की गई है, जो प्रकाश के अनुसार अपना रंग और रूप बदलती है।
इसके अलावा, उन्होंने साइप्रस की फर्स्ट लेडी को आंध्र प्रदेश के कारीगरों द्वारा निर्मित एक चांदी का क्लच बैग भेंट किया, जिस पर मंदिर कला और शाही डिज़ाइन की झलक है। यह भारतीय संस्कृति का एक सुंदर परिचय था।
तुर्की को मिला संदेश
हाल ही में भारत-पाक युद्ध के दौरान तुर्की ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया था। तुर्की ने पाकिस्तान को हथियार और ड्रोन दिए और UN में भारत के खिलाफ बयान दिए। इसी पृष्ठभूमि में पीएम मोदी का साइप्रस दौरा एक अप्रत्यक्ष लेकिन स्पष्ट संदेश बनकर सामने आया है।
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क्यों है यह दौरा तुर्की के लिए संदेश?
- साइप्रस का उत्तर-पूर्वी हिस्सा 1974 से तुर्की के अवैध कब्जे में है।
- तुर्की इसे ‘Northern Cyprus’ नाम से एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है, लेकिन दुनिया इसे मान्यता नहीं देती।
- भारत समेत अधिकांश देश इसे तुर्की का अवैध सैन्य कब्जा मानते हैं।
पीएम मोदी का ग्रीन लाइन तक दौरा
प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस की ग्रीन लाइन तक गए। यह वो लाइन है जो साइप्रस और तुर्की के कब्जे वाले हिस्से को अलग करती है। यहां पर UN का बफर ज़ोन भी है। इस स्थल का दौरा करके प्रधानमंत्री ने यह संकेत दिया कि भारत, साइप्रस की संप्रभुता का समर्थन करता है।
यह दौरा इस बात का प्रमाण है कि भारत केवल बयानबाज़ी नहीं करता, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर अपने मित्र देशों के साथ खड़ा होता है — भले ही वो दुनिया का कोई भी कोना क्यों न हो।
साइप्रस: छोटा देश, बड़ा महत्व
- क्षेत्रफल: मात्र 9,240 वर्ग किमी
- जनसंख्या: लगभग 13 लाख
- भू-स्थान: भूमध्य सागर में स्थित, तुर्की से केवल 470 किमी दूर
इतिहास में देखा जाए तो साइप्रस पर पहले 1571 से उस्मानिया सल्तनत का शासन रहा, और बाद में ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। वर्ष 1960 में साइप्रस स्वतंत्र राष्ट्र बना। लेकिन वहां के मुस्लिम और ईसाई समुदायों में तनाव के चलते यह देश दो भागों में बंट गया — एक हिस्सा तुर्की के कब्जे में चला गया।

भारत और साइप्रस के पुराने संबंध
साइप्रस और भारत के संबंध ऐतिहासिक और सहयोगात्मक रहे हैं। भारत हमेशा साइप्रस की संप्रभुता और अखंडता का समर्थन करता आया है।
दो अहम मिशन:
- 2006 – ऑपरेशन सुकून
- लेबनान युद्ध के दौरान वहां फंसे भारतीयों को साइप्रस के माध्यम से निकाला गया।
- 2011 – ऑपरेशन सेफ होम कमिंग
- लीबिया संकट के दौरान भारतीयों की वापसी में साइप्रस की भूमिका अहम रही।
भारत, साइप्रस को एक भरोसेमंद मित्र मानता है — और अब हथियार सहयोग तक की संभावनाएं भी बन रही हैं।
भारत की विदेश नीति में बदलाव
भारत अब प्रतिक्रियाशील नहीं, बल्कि सक्रिय कूटनीति पर विश्वास करता है। जहां तुर्की पाकिस्तान का समर्थन करता है, वहीं भारत ने साइप्रस का दौरा कर यह स्पष्ट कर दिया कि वह अपने मित्र देशों की रक्षा में कभी पीछे नहीं हटेगा।
यह संभावना मजबूत होती जा रही है कि भारत साइप्रस को ड्रोन, रक्षा उपकरण या साइबर तकनीक में मदद कर सकता है। इससे साइप्रस अपनी सुरक्षा क्षमता बढ़ा पाएगा और तुर्की के दबाव के सामने मज़बूती से खड़ा हो सकेगा।
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भारत की रणनीतिक कूटनीति और साइप्रस का समर्थन
आज भारत वैश्विक मंच पर अपनी रणनीतिक भूमिका को तेजी से विस्तार दे रहा है। चीन, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों की बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए भारत उन देशों से मजबूत रिश्ते बना रहा है जो समान मूल्यों और लोकतांत्रिक सोच में विश्वास रखते हैं। साइप्रस भी उन्हीं देशों में से एक है।
भारत यह भली-भांति समझता है कि पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच स्थित साइप्रस एक भू-राजनीतिक चोक पॉइंट (geopolitical chokepoint) है। इस क्षेत्र में भारत की प्रभावी उपस्थिति उसे ना केवल पश्चिमी देशों के करीब लाती है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करती है।
साइप्रस की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखकर भारत अब उस भूमिका को निभाना चाहता है जो शांति, स्थिरता और क्षेत्रीय संतुलन की ओर इशारा करती है। यह भारत की “Act East” और “Link West” नीति का भी हिस्सा है, जिसमें भारत पूर्वी देशों से रिश्ते मज़बूत करते हुए पश्चिमी देशों में भी अपनी कूटनीतिक पकड़ बनाना चाहता है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा ना केवल सांकेतिक है, बल्कि भविष्य की रणनीतिक साझेदारियों की नींव भी है। संभव है कि आने वाले वर्षों में भारत और साइप्रस के बीच Free Trade Agreement (FTA) या रक्षा-तकनीकी समझौते भी हों।
conclusion: एक छोटी यात्रा, बड़ा संदेश
प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस दौरा केवल सम्मान पाने का मौका नहीं था — बल्कि यह भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत और स्पष्ट विदेश नीति का प्रतीक है। भारत अब आंखों में आंख डालकर कूटनीति कर रहा है और अपने हितों व मित्रों की रक्षा के लिए तैयार है। Sources: PM Modi Cyprus Visit
1. पीएम मोदी को साइप्रस में कौन-सा सम्मान मिला?
ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III – साइप्रस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
2. क्या यह दौरा तुर्की के लिए कोई संदेश था?
हां, प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रीन लाइन पर जाकर तुर्की को अप्रत्यक्ष संदेश दिया कि भारत साइप्रस की संप्रभुता का समर्थन करता है।
3. साइप्रस और तुर्की का विवाद क्या है?
1974 से तुर्की ने साइप्रस के उत्तरपूर्वी हिस्से पर अवैध कब्जा कर रखा है, जिसे कोई भी देश मान्यता नहीं देता।
4. भारत और साइप्रस के बीच क्या संबंध हैं?
भारत ने साइप्रस की कई बार मदद की है, खासकर ऑपरेशन सुकून और सेफ होम कमिंग के समय।
5. क्या भारत अब साइप्रस को सैन्य सहयोग देगा?
इसकी संभावना है, जिससे साइप्रस तुर्की के खिलाफ मज़बूत स्थिति में आ सके।
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