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India's Telecom Sector 2025: BSNL की वापसी

India’s Telecom Sector 2025: क्या आपने कभी गौर किया है कि आज आपके फोन में सिर्फ Jio और Airtel का नेटवर्क ही क्यों दिखाई देता है? वो तमाम कंपनियां कहां गायब हो गईं जो एक समय पर भारत की टेलीकॉम इंडस्ट्री पर राज करती थीं? यूनिनॉर, टाटा डोकोमो, एमटीएस, एयरसेल जैसे नाम आज सिर्फ यादों में बचे हैं। यहां तक कि एक समय की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में से एक Vodafone Idea भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

यह कहानी सिर्फ कंपनियों के गिरने और उभरने की नहीं है, बल्कि भारत के टेलीकॉम सिस्टम के उस बदलाव की है जिसने डिजिटल इंडिया की नींव रखी और आज उसे 6G और सेटेलाइट इंटरनेट तक पहुंचाने की तैयारी हो रही है।

भारत में टेलीकॉम का मौजूदा परिदृश्य

साल 2016 के बाद भारत के टेलीकॉम सेक्टर में बड़ा भूचाल आया। जब रिलायंस जियो ने अपनी सेवाएं लॉन्च कीं, तब मुफ्त इंटरनेट और सस्ते कॉलिंग प्लान्स के चलते बाजार में प्रतिस्पर्धा की होड़ लग गई। जहां कुछ कंपनियों ने खुद को नए हालातों में ढाल लिया, वहीं कई कंपनियां इस दबाव को नहीं झेल सकीं और बाजार से बाहर हो गईं।

आज स्थिति ये है कि भारत के करोड़ों मोबाइल यूजर्स के पास केवल दो विकल्प हैं—Jio और Airtel। Vodafone Idea अब भी मैदान में है, लेकिन उसकी हालत बेहद नाजुक है। वहीं BSNL, जो कभी सरकारी गौरव का प्रतीक था, अब पुनर्जीवन की ओर देख रहा है।

मंत्री का बयान: सरकार की टेलीकॉम नीति की झलक

हाल ही में बेंगलुरु में आयोजित इंडिया मोबाइल कांग्रेस 2025 के रोड शो में संचार राज्य मंत्री चंद्रशेखर पम्मासानी ने टेलीकॉम सेक्टर को लेकर कई अहम बातें कहीं। उन्होंने माना कि भारत के टेलीकॉम सेक्टर में अब एक प्रकार की डुओपॉली (दो कंपनियों का वर्चस्व) बन गई है। Jio और Airtel के अलावा किसी अन्य का नेटवर्क उपयोग में नहीं है।

हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया कि इस स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है। टेलीकॉम सेक्टर में निवेश, टेक्नोलॉजी और एक्सपेंशन की भारी जरूरत होती है, और Jio तथा Airtel ने अपने संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल किया है। इसके चलते उन्होंने 5G रोलआउट को तेज़ी से लागू कर दिखाया।

VI की जंग: कभी नंबर वन, आज कर्ज में डूबा

Vodafone और Idea का मर्जर जब हुआ, तो देश को एक मजबूत प्रतिस्पर्धी टेलीकॉम कंपनी की उम्मीद थी। लेकिन आज VI अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। सरकार से बार-बार मदद मांगना, शेयर इक्विटी में बदलवाना और फिर भी घाटे से उबर न पाना—ये सभी संकेत बताते हैं कि कंपनी के लिए राह बेहद कठिन है।

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India's Telecom Sector 2025: BSNL की वापसी

VI पर अब भी लगभग ₹83,000 करोड़ का बकाया है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा एजीआर (Adjusted Gross Revenue) और स्पेक्ट्रम फीस का है। इसकी जड़ें 1999 से शुरू होती हैं, जब टेलीकॉम कंपनियों और सरकार के बीच यह स्पष्ट नहीं था कि किस आमदनी पर कितना टैक्स लगेगा। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, और 2019 में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि टेलीकॉम कंपनियों की टेलीकॉम और नॉन-टेलीकॉम दोनों आय को AGR में गिना जाएगा।

इस फैसले ने VI जैसी कंपनियों पर जबरदस्त वित्तीय दबाव डाला। हालांकि सरकार ने उसके ₹36,000 करोड़ के कर्ज को इक्विटी में बदलकर राहत दी, लेकिन अभी भी कंपनी पूरी तरह से खड़ी नहीं हो सकी है।

BSNL की वापसी की कोशिश

BSNL, जो कभी भारत की सबसे बड़ी सरकारी टेलीकॉम कंपनी थी, आज लगभग निष्क्रिय अवस्था में है। लेकिन सरकार इसे केवल एक कंपनी की तरह नहीं बल्कि आत्मनिर्भर भारत की एक प्रतीक परियोजना के तौर पर दोबारा खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

मंत्री जी का कहना है कि इस बार BSNL सिर्फ एक टेलीकॉम सर्विस नहीं, बल्कि एक ‘मेड इन इंडिया’ तकनीक के साथ वापसी करेगा। इसका मतलब यह है कि BSNL का नेटवर्क, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सब कुछ भारत में ही तैयार किया जाएगा।

यह कदम भारत को विदेशी टेलीकॉम कंपनियों की निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में अहम साबित हो सकता है। हालांकि इसमें समय लगेगा, लेकिन सरकार आश्वस्त है कि BSNL भविष्य में एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरेगा।

क्या डुओपॉली खतरा है?

टेलीकॉम सेक्टर में सिर्फ दो बड़ी कंपनियों का होना किसी भी बाजार के लिए खतरे की घंटी हो सकता है। इससे प्रतिस्पर्धा कम होती है, और ग्राहक की पसंद सीमित रह जाती है। मंत्री जी ने भी इस बात को दोहराया कि भारत में कम से कम चार से पांच मजबूत टेलीकॉम कंपनियां होनी चाहिए ताकि ग्राहक को बेहतर सेवाएं मिल सकें।

सरकार VI और BSNL को सहारा देकर बाजार में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रही है ताकि भविष्य में कोई एक कंपनी पूरी इंडस्ट्री पर कब्जा न कर सके।

6G की ओर भारत का कदम

भारत अब 6G की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। मंत्री जी के अनुसार अब तक भारत 200 से अधिक 6G टेक्नोलॉजी पर पेटेंट फाइल कर चुका है। जबकि अमेरिका और चीन जैसे देश 2030 तक 6G लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं, भारत की कोशिश है कि वह इस रेस में सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि एक मजबूत प्रतिभागी के रूप में सामने आए।

यह पहल भारत की डिजिटल आत्मनिर्भरता को और मजबूती देगी। यदि भारत 6G तकनीक का विकास और उसे वैश्विक स्तर पर लागू करने में सफल होता है, तो यह भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दिला सकता है।

एलन मस्क की Starlink की एंट्री

दूसरी बड़ी खबर यह है कि एलन मस्क की कंपनी Starlink को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं देने की अनुमति मिल गई है। इसका मतलब यह है कि अब भारत के दूर-दराज के गांवों और पहाड़ी इलाकों में भी इंटरनेट की पहुंच सैटेलाइट के माध्यम से संभव होगी—जहां अभी तक टावर लगाना मुश्किल था।

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Starlink की यह सेवा भारत के डिजिटल डिवाइड को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, हालांकि इसके प्लान कितने सस्ते होंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन इसके आने से गांव और कस्बों में शिक्षा, हेल्थ और डिजिटल ट्रांजैक्शन के दरवाजे और अधिक खुल सकते हैं।

India's Telecom Sector 2025: BSNL की वापसी

भारत सरकार की डिजिटल ग्रामीण योजना

भारत सरकार ने भी बड़ी घोषणा की है कि लगभग ₹1.5 लाख करोड़ के निवेश से देश के 6 लाख गांवों और पंचायतों को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ा जाएगा। इसके तहत लगभग 1.5 करोड़ ग्रामीण घरों तक ब्रॉडबैंड इंटरनेट पहुंचेगा। यह इंटरनेट सब्सिडाइज दरों पर उपलब्ध होगा, जिससे गांव और शहर के बीच डिजिटल अंतर को काफी हद तक मिटाया जा सकेगा।

10 सालों में आया ऐतिहासिक बदलाव

यदि हम पिछले 10 सालों की बात करें, तो 2015 के पहले गांवों में मोबाइल सिग्नल तक मिलना मुश्किल था। लेकिन आज भारत के 95% से अधिक गांवों में 4G इंटरनेट मौजूद है। 2.2 लाख से ज्यादा गांव ब्रॉडबैंड से जुड़ चुके हैं और देश में 1 अरब से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसका पूरा श्रेय उस टेलीकॉम बदलाव को जाता है, जिसने एक ओर Jio और Airtel जैसे निजी प्लेयर्स को तेजी से बढ़ने का मौका दिया और दूसरी ओर BSNL व Vodafone Idea जैसी कंपनियों को संभालने की सरकारी नीति को भी जन्म दिया।

डिजिटल स्टार्टअप्स की भूमिका

सरकार केवल टेलीकॉम कंपनियों तक ही सीमित नहीं है। अब वह टेलीकॉम से जुड़े स्टार्टअप्स को भी आगे बढ़ाने के लिए ₹500 करोड़ से ज्यादा की सहायता दे चुकी है। 120 से अधिक हाईटेक स्टार्टअप्स को क्वांटम कम्युनिकेशन, ऑटोमेटेड नेटवर्क्स, और घरेलू टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर में काम करने के लिए समर्थन मिल चुका है।

यह एक संकेत है कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि डिजिटल उत्पादक बनने की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है।

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टेलीकॉम कंपनियों की गिरावट के पीछे के असली कारण

कई लोग पूछते हैं कि आखिर वो टेलीकॉम कंपनियां जो कभी बाजार में छाई हुई थीं, वो अचानक क्यों गायब हो गईं? इसका सीधा उत्तर सिर्फ “Jio का आना” नहीं है। असल में, भारत का टेलीकॉम बाजार हमेशा से ही एक कठिन और भारी निवेश वाला सेक्टर रहा है। यहां सिर्फ नेटवर्क खड़ा करना ही काफी नहीं होता, बल्कि स्पेक्ट्रम की बोली, कर्ज चुकाना, सरकार के साथ नीति संबंधी मामलों को संभालना और ग्राहक सेवा को लगातार बेहतर करते रहना पड़ता है।

कई कंपनियां जैसे Aircel, Tata Docomo, Uninor आदि 2G या 3G तक तो टिकी रहीं, लेकिन 4G टेक्नोलॉजी के लिए ना तो उनके पास पूंजी थी और ना ही इनफ्रास्ट्रक्चर। वहीं Jio ने जब बाजार में एंट्री की, तो न केवल उसने फ्री इंटरनेट का ऑफर दिया बल्कि वॉइस कॉल को भी पूरी तरह मुफ्त कर दिया। इससे अन्य कंपनियों के बिजनेस मॉडल को झटका लगा और धीरे-धीरे वे बाजार से बाहर हो गईं।

AGR विवाद और सुप्रीम कोर्ट का झटका

Adjusted Gross Revenue यानी AGR विवाद भारतीय टेलीकॉम सेक्टर का वो घाव है, जो अभी तक पूरी तरह नहीं भर पाया है। इस विवाद की शुरुआत साल 1999 में हुई, जब सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच इस बात को लेकर मतभेद हुआ कि टेलीकॉम कंपनियों की वास्तविक कमाई किसे माना जाए।

कंपनियां चाहती थीं कि केवल टेलीकॉम से होने वाली आय को ही सरकार का हिस्सा मानें, लेकिन सरकार चाहती थी कि नॉन-टेलीकॉम आय (जैसे की रियल एस्टेट, शेयर आदि से कमाई) को भी AGR में शामिल किया जाए। यह मामला 20 साल तक खिंचता रहा और आखिरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।

इस फैसले के बाद कंपनियों पर ₹1.47 लाख करोड़ की देनदारी आन पड़ी। अकेले VI को करीब ₹58,000 करोड़ और Airtel को ₹43,000 करोड़ चुकाने थे। Jio पर बहुत कम बकाया था क्योंकि वह नई कंपनी थी।

टेलीकॉम सेक्टर में सरकारी नीतियों की भूमिका

भारत सरकार की भूमिका भी इस क्षेत्र में हमेशा से निर्णायक रही है। जब VI जैसी कंपनियां डूबने लगीं, तब सरकार के सामने दो विकल्प थे — या तो उसे डूबने दिया जाए या फिर उसे बचाया जाए ताकि बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे। सरकार ने दूसरा विकल्प चुना।

हालांकि, यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि हर कंपनी के लिए एक जैसा रवैया नहीं अपनाया जाएगा। VI को इसलिए राहत दी गई क्योंकि उसकी गिरावट से बाजार मोनोपॉली की ओर चला जाता। वहीं Airtel को वैसी राहत नहीं दी गई क्योंकि उसकी स्थिति पहले से ही मजबूत थी।

5G की दौड़ में भारत की बड़ी छलांग

जहां 2G, 3G और 4G के मामलों में भारत हमेशा तकनीकी रूप से देरी से आया, वहीं 5G के मामले में भारत ने इतिहास रच दिया। 2022 में ही भारत में 5G सेवाएं लॉन्च हो गईं और आज देश के 7,000 से अधिक शहरों में 5G नेटवर्क काम कर रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका Jio और Airtel की रही, जिन्होंने बहुत कम समय में देशभर में अपने 5G नेटवर्क का विस्तार कर लिया।

5G न केवल हाई-स्पीड इंटरनेट देता है, बल्कि स्मार्ट सिटी, ऑटोमेशन, टेलीमेडिसिन, वर्चुअल रियलिटी, और इंडस्ट्री 4.0 जैसी नई तकनीकों के लिए भी आधारशिला रखता है।

क्या बदल रहा है?

जब अगली बार आप अपने फोन में नेटवर्क खोजें और उसमें सिर्फ Jio या Airtel का ही नाम दिखाई दे, तो यह जरूर याद रखिए कि भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री में बदलाव की बयार चल रही है। एक ओर VI और BSNL को पुनर्जीवित करने की कोशिशें हो रही हैं, वहीं भारत 6G, Starlink और गांवों में डिजिटल क्रांति के जरिए खुद को दुनिया के टेलीकॉम लीडर के रूप में स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है।

यह एक ऐसा दौर है जब भारत केवल कंज्यूमर नहीं, बल्कि इनोवेशन का केंद्र बन सकता है।

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