आयुर्वेदिक ऋतुचर्या: क्या आपने कभी गौर किया है कि जैसे ही मौसम बदलता है, वैसे ही हमारे शरीर में भी कुछ न कुछ बदलाव आने लगते हैं? उदाहरण के लिए, बारिश के मौसम में अक्सर पेट खराब होने लगता है, सर्दियों में ज़ुकाम और जॉइंट्स में जकड़न महसूस होती है, और गर्मियों में पेट में जलन और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। इन सभी परेशानियों की एक गहरी वजह है, जो आयुर्वेद में बहुत ही साफ़ शब्दों में बताई गई है।
मौसम और शरीर का संबंध: आयुर्वेद की दृष्टि से
आयुर्वेद के अनुसार हर मौसम की अपनी एक विशेष प्रकृति होती है और उसी के अनुसार हमारे शरीर में तीन दोष — वात, पित्त और कफ — संतुलन या असंतुलन की स्थिति में आते हैं। जब हम ऋतु के अनुसार आहार और विहार (डेली रूटीन) में बदलाव नहीं करते, तो यही दोष असंतुलित होकर बीमारियों का कारण बनते हैं।
इसलिए आयुर्वेद में “ऋतुचर्या” यानी ऋतु के अनुसार जीवनशैली अपनाने की परंपरा है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि तीन प्रमुख ऋतुओं — वर्षा, ग्रीष्म और शीत ऋतु — में आपको क्या खाना चाहिए, किन आदतों को अपनाना चाहिए, और किन चीजों से बचना चाहिए ताकि आप पूरे साल स्वस्थ और ऊर्जावान रह सकें।
बारिश के मौसम में आयुर्वेदिक आहार और जीवनशैली
बारिश के मौसम में वातावरण में नमी अधिक होती है और सूर्य की तपन कम हो जाती है। इसका सीधा असर हमारी पाचन शक्ति पर पड़ता है। इस मौसम में ‘अग्नि’ यानी डाइजेस्टिव फायर कमजोर पड़ जाती है और शरीर में कफ दोष बढ़ने लगता है। यही वजह है कि इस समय पेट से जुड़ी समस्याएं ज्यादा होती हैं।
इस मौसम में हल्का, सुपाच्य और गर्म भोजन सबसे ज़्यादा फायदेमंद होता है। मूंग दाल और चावल की खिचड़ी, गर्म सूप, उबली हुई सब्जियां, और देसी घी से बनी ताजा खिचड़ी शरीर को न केवल एनर्जी देती है बल्कि पाचन को भी बेहतर बनाती है। अदरक, हल्दी, जीरा, काली मिर्च और हिंग जैसे मसालों का सेवन भी इस मौसम में विशेष लाभकारी माना गया है।
किन चीजों से बचना चाहिए
बारिश में पकोड़े, समोसे, कोल्ड ड्रिंक्स, दही, छाछ, और सलाद जैसी ठंडी व भारी चीजें नहीं खानी चाहिए। इनसे कफ और गैस की समस्या बढ़ सकती है। इसी तरह पानी वाले फल जैसे कि तरबूज और खरबूजा से भी परहेज़ करना चाहिए क्योंकि वे शरीर में पहले से मौजूद अतिरिक्त जल तत्व को और बढ़ा देते हैं।
जीवनशैली में क्या बदलाव करें
• नहाने के लिए हल्के गर्म पानी का प्रयोग करें
• सुबह गर्म पानी में सौंफ और अदरक उबालकर उसका पानी पिएं
• सप्ताह में कम से कम तीन बार तुलसी और गिलोय का काढ़ा जरूर लें
• गीले कपड़े देर तक न पहनें और शरीर को सूखा और गर्म बनाए रखें
गर्मी के मौसम में आयुर्वेदिक आहार और जीवनशैली
गर्मियों में तेज़ धूप और अधिक तापमान शरीर में पित्त दोष को बढ़ाता है। इससे पेट में जलन, मुंह के छाले, चिड़चिड़ापन, और नींद में कमी जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं।
गर्मी में ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना सबसे उपयुक्त होता है। खीरा, ककड़ी, लौकी, टिंडा, पुदीने वाला रायता, नारियल पानी, नींबू पानी, और तरबूज जैसे फल शरीर को अंदर से ठंडक पहुंचाते हैं। छाछ में पुदीना और भुना हुआ जीरा मिलाकर पीना पाचन के लिए बहुत फायदेमंद है।
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सौंफ का पानी भी गर्मी में अमृत समान है। रातभर एक चम्मच सौंफ को एक गिलास पानी में भिगो दें और सुबह उस पानी को छानकर पी लें। चाहें तो इसे हल्का गर्म करके भी ले सकते हैं।

किन चीजों से बचें
बहुत ज्यादा तली-भुनी चीजें, मसालेदार खाना, चाय-कॉफी की अधिकता, और बाहर का स्ट्रीट फूड गर्मी में शरीर में पित्त को और भड़काता है। ऐसे समय में अधिक देर तक भूखे रहने से भी पेट की जलन और एसिडिटी बढ़ सकती है।
जीवनशैली में क्या बदलाव करें
• तेज धूप में बाहर निकलने से बचें, विशेषकर दोपहर में
• सुबह या शाम को हल्का योग करें
• हफ्ते में दो बार नारियल तेल से शरीर की मालिश करें
• सिर को ढंक कर रखें और शरीर को हाइड्रेट रखें
• हल्के और कॉटन के कपड़े पहनें
ठंडी के मौसम में आयुर्वेदिक आहार और जीवनशैली
सर्दियों में वात दोष प्रबल हो जाता है। शरीर ठंडा हो जाता है, जॉइंट्स में अकड़न आने लगती है, इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है और ऊर्जा का स्तर गिर जाता है। इसलिए इस मौसम में ऐसे खाद्य और दिनचर्या की ज़रूरत होती है जो शरीर में गर्मी पैदा करें।
घी और तिल के प्रयोग से बने खाद्य पदार्थ, उड़द की दाल की खिचड़ी, बाजरे या गेहूं का दलिया, मेवा से भरपूर लड्डू, और हल्दी वाला दूध — ये सभी सर्दियों में ऊर्जा देने वाले और शरीर को गर्म रखने वाले भोजन हैं। गुड़ और तिल से बनी मिठाइयाँ भी सर्दियों में शरीर को ताकत देती हैं।
रात को सोने से पहले गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीना न केवल खांसी-जुकाम से बचाता है बल्कि जॉइंट पेन और अनिद्रा जैसी समस्याओं से भी राहत देता है।
किन चीजों से बचना चाहिए
बहुत अधिक ठंडी चीजें जैसे कि आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स या फ्रिज का पानी, शरीर में ठंड बढ़ाते हैं। साथ ही सर्दियों में देर तक भूखे रहना भी शरीर की ऊर्जा को कम करता है और वात दोष को बढ़ाता है।
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जीवनशैली में क्या अपनाएं
• रोज सुबह 15–20 मिनट धूप में जरूर बैठें
• तिल या सरसों के तेल से सप्ताह में दो बार शरीर की मालिश करें
• शरीर को गर्म रखने वाले कपड़े पहनें
• हर्बल चाय जिसमें तुलसी, अदरक, दालचीनी, इलायची आदि हों, दिन में एक बार जरूर लें
• ठंडी हवा से खुद को ढककर रखें और पर्याप्त नींद लें
बदलते मौसम में शरीर क्यों असंतुलित हो जाता है?
आपने कभी सोचा है कि जैसे ही मौसम बदलता है, हम बीमार क्यों पड़ने लगते हैं? दरअसल, इसका जवाब हमारे शरीर की प्रकृति में छिपा है। हमारा शरीर स्थिर नहीं है। जैसे मौसम बदलता है, वैसे ही हमारे शरीर का तापमान, हार्मोनल बैलेंस और मेटाबॉलिज़्म भी धीरे-धीरे बदलता है।
आयुर्वेद कहता है कि मौसम के साथ शरीर के तीन दोष — वात, पित्त और कफ — अलग-अलग ढंग से रिएक्ट करते हैं। यदि हम इन बदलावों को पहचानकर अपने खानपान और रहन-सहन को उसी के अनुरूप ढाल दें, तो हम बीमारियों से बचे रह सकते हैं।
उदाहरण के लिए, बारिश में वातावरण भारी और नमी से भरा होता है, जिससे कफ बढ़ता है और हमारी डाइजेस्टिव अग्नि कमजोर हो जाती है। अगर हम इस मौसम में भारी, तैलीय या ठंडा खाना खा लें, तो पेट की समस्या होना तय है।
वहीं गर्मियों में वातावरण सूखा और गर्म हो जाता है, जिससे पित्त दोष बढ़ता है और शरीर में हीट बढ़ जाती है। ऐसे में अगर कोई मिर्च-मसाले वाला खाना खाए या कम पानी पीए तो डिहाइड्रेशन, पेट में जलन और घबराहट जैसी समस्याएं होने लगती हैं।
सर्दियों में वात दोष बढ़ता है — यानी ठंडक और ड्राईनेस — जिससे जोड़ों में अकड़न, स्किन ड्रायनेस, और इम्यूनिटी कमजोर होना जैसी परेशानियाँ आम हो जाती हैं। यही कारण है कि इस मौसम में पौष्टिक, गरम और तेलयुक्त खाना ज़रूरी होता है।
आज की जीवनशैली में क्यों भूल रहे हैं मौसमी स्वास्थ्य रूटीन?
आजकल हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमें खुद के शरीर की ज़रूरतों की पहचान ही नहीं रह गई है। सुबह-शाम का फर्क मिटा दिया है, मौसम की परवाह नहीं करते, और खाना सिर्फ स्वाद या जल्दी में खाते हैं। हमें यह समझना होगा कि केवल डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाना ही स्वास्थ्य नहीं है। असली स्वास्थ्य वह है, जहाँ आप बीमार ही न पड़ें।
हमारे दादा-नाना जानते थे कि किस मौसम में क्या खाना है, कौन सी चीज़ से बचना है और क्या घरेलू नुस्खे अपनाने हैं। लेकिन आज की पीढ़ी इंस्टेंट फूड और कोल्ड ड्रिंक्स में उलझ गई है। यही वजह है कि छोटी उम्र में ही गैस, एसिडिटी, इम्यूनिटी वीकनेस, स्किन प्रॉब्लम और मोटापा जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं।
कैसे शुरू करें मौसम के अनुसार जीवनशैली?
ऋतुचर्या कोई बहुत कठिन बात नहीं है। यह जीवन में छोटे-छोटे बदलावों का नाम है। जैसे:
• गर्मियों में फ्रीज का ठंडा पानी छोड़कर मटके का पानी पीना
• सर्दियों में गुनगुने पानी से नहाना और सरसों तेल से बॉडी की मालिश करना
• बारिश में हल्का, गरम और सुपाच्य भोजन खाना
• हर मौसम में कम से कम 15–20 मिनट प्राणायाम, योग या वॉक को दिनचर्या का हिस्सा बनाना
इन बदलावों को आदत बनाइए और कुछ हफ्तों में ही फर्क महसूस कीजिए। आपका शरीर आपको धन्यवाद देगा।
परिवार में सभी को करें शामिल
अगर आप वाकई खुद को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि आप अपने पूरे परिवार को इस बदलाव में शामिल करें। बच्चों को बताएं कि क्यों गर्मी में खीरा खाना चाहिए, या सर्दी में हल्दी वाला दूध क्यों ज़रूरी है। बड़े-बुज़ुर्गों से पुराने घरेलू नुस्खे पूछें और उन्हें दोबारा अपनाएं।
हर उम्र के व्यक्ति को अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार खानपान और दिनचर्या चुननी चाहिए। बच्चों की डाइट अलग होगी, युवाओं की अलग, और बुजुर्गों की और भी ज़्यादा ध्यान देने लायक होगी। अगर सभी मिलकर मौसम के अनुसार खानपान और रहन-सहन अपनाएंगे, तो पूरे परिवार का स्वास्थ्य बेहतर होगा।
आधुनिक विज्ञान भी मानता है ऋतुचर्या को
शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन अब मॉडर्न मेडिकल साइंस भी मानता है कि मौसम के अनुसार खानपान और जीवनशैली में बदलाव ज़रूरी है। अमेरिका और यूरोप की बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में “सीज़नल डायट” पर रिसर्च हो रही है, और वहाँ के डॉक्टर्स भी यह मानने लगे हैं कि आयुर्वेद में दिए गए ऋतु अनुसार खानपान की बातें वैज्ञानिक और व्यावहारिक दोनों हैं।
तो अगर आप सोचते हैं कि ये सब दादी-नानी के ज़माने की बातें हैं, तो एक बार फिर से सोचिए। आज की टेक्नोलॉजी और रिसर्च भी यही कह रही है कि प्रकृति से तालमेल बिठाकर जीने वाला इंसान ही असली हेल्दी इंसान है।
अपने शरीर की सुनिए, मौसम की नहीं अनदेखी कीजिए
कई बार शरीर खुद हमें संकेत देता है — जैसे गर्मी में भूख कम लगना, या सर्दी में बार-बार पेशाब आना। ये संकेत होते हैं कि शरीर अपने तरीके से मौसम से सामंजस्य बैठा रहा है। हमें बस इन संकेतों को पहचानकर उसी के अनुसार खुद को ढालना है।
यही है आयुर्वेदिक ऋतुचर्या की असली शक्ति — बिना किसी दवा, इंजेक्शन या अस्पताल के — सिर्फ खाने, पीने और जीने के सही तरीके से आप अपने शरीर को सालभर बीमारी से दूर और ऊर्जा से भरपूर रख सकते हैं।
You will get complete health through Ritucharya
आयुर्वेद केवल दवाओं का विज्ञान नहीं है, यह जीवन जीने की कला है। मौसम के अनुसार जीवनशैली और आहार में बदलाव लाकर हम न केवल सामान्य बीमारियों से बच सकते हैं बल्कि पूरे वर्ष खुद को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित रख सकते हैं।
हमारे पूर्वज बिना मॉडर्न टेक्नोलॉजी के भी स्वस्थ और दीर्घायु थे, क्योंकि वे मौसम के अनुसार अपने खानपान और दिनचर्या को बदलते थे। अगर हम आज के समय में भी इस परंपरा को अपनाएं, तो यह हमारे लिए वरदान साबित हो सकती है।