RBI Gold Reserve India: पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर लगातार उथल-पुथल देखने को मिल रही है। एक ओर रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है, तो दूसरी तरफ पश्चिम एशिया में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। चीन और ताइवान के बीच टकराव की आशंका भी लगातार बनी हुई है। इन सभी परिस्थितियों ने पूरी दुनिया को अस्थिरता की ओर धकेल दिया है।
युद्ध और भू-राजनीतिक तनावों की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है और मंदी का डर गहराता जा रहा है। ऐसे में तमाम देश अपने संसाधनों को सुरक्षित करने के लिए रणनीतिक कदम उठा रहे हैं, जिससे भविष्य में किसी आर्थिक या राजनीतिक संकट की स्थिति में उनकी सुरक्षा बनी रहे।
RBI का ऐतिहासिक फैसला: भारत वापस आया 100.32 मीट्रिक टन सोना
ऐसे समय में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक बेहद अहम और ऐतिहासिक निर्णय लिया है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक 100.32 मीट्रिक टन सोना विदेशों से भारत वापस मंगवाया है। यह कदम भारत की आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा संकेत है।
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई ने यह फैसला मौजूदा वैश्विक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए लिया है। दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंक्स की तरह RBI भी अपनी संपत्तियों को सुरक्षित जगहों पर रखने के उद्देश्य से अब फिजिकल गोल्ड रिज़र्व को भारत में बढ़ा रहा है।
सोना क्यों है इतना अहम? क्या यह सिर्फ आभूषण नहीं?
अक्सर सोने को आभूषणों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में इसका बहुत बड़ा महत्व होता है। यह केवल निवेश का एक सुरक्षित माध्यम नहीं, बल्कि देश की मौद्रिक और रणनीतिक स्थिरता का भी एक मजबूत स्तंभ होता है।
जब किसी देश के पास अधिक मात्रा में फिजिकल गोल्ड मौजूद होता है, तो वह संकट की स्थिति में विदेशी मुद्रा को स्थिर रखने, महंगाई पर नियंत्रण और मुद्रा की साख बनाए रखने में मदद करता है। यही कारण है कि सोने को “सेफ हेवन” एसेट कहा जाता है।

भारत की गोल्ड होल्डिंग में जबरदस्त इजाफा
RBI के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च 2025 तक भारत के पास कुल 879.58 मीट्रिक टन सोना मौजूद था। जबकि एक साल पहले यानी 31 मार्च 2024 को यह आंकड़ा 822.10 मीट्रिक टन था। यानी केवल एक वर्ष में भारत की गोल्ड होल्डिंग में 57.48 मीट्रिक टन की वृद्धि हुई।
इसमें से 311.38 मीट्रिक टन सोना आरबीआई के इशू डिपार्टमेंट में दर्ज है, जबकि 568.20 मीट्रिक टन बैंकिंग डिपार्टमेंट की संपत्ति के रूप में सूचीबद्ध है। ये आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि भारत ने अपने गोल्ड रिजर्व को योजनाबद्ध तरीके से मजबूत किया है।
ये भी पढ़ें – भारत अमेरिका व्यापार डील: ट्रंप की चेतावनी और भारत की जवाबी रणनीति 2025
कहां रखा गया था भारत का सोना और अब कहां है?
पिछले वर्षों में भारत का अधिकांश सोना विदेशों की सुरक्षित तिजोरियों में जमा था। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा लंदन के बैंक ऑफ इंग्लैंड में रखा गया था। इसके अलावा स्विट्जरलैंड के बासिल शहर में स्थित बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट (BIS) और अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक में भी भारत ने सोना जमा किया हुआ था।
अब RBI के फैसले के बाद 100.32 मीट्रिक टन सोना वापस भारत लाया गया है। इससे भारत में रखा गया फिजिकल गोल्ड बढ़कर 200.06 मीट्रिक टन हो गया है, जबकि विदेशों में रखा गया सोना घटकर 367.60 मीट्रिक टन रह गया है। पहले यह आंकड़ा 413.79 मीट्रिक टन था। यानी विदेशी भंडारण में लगभग 46 मीट्रिक टन की कमी आई है।
क्या यह फैसला किसी बड़े खतरे का संकेत है?
बाजार विश्लेषकों और रणनीतिकारों की मानें तो आरबीआई का यह कदम पूरी तरह से प्री-कॉशनरी और रणनीतिक है। जियोपॉलिटिकल अनिश्चितताओं के चलते अब भारत अपने संसाधनों को घरेलू धरातल पर लाकर अधिक सुरक्षा प्रदान करना चाहता है।
विदेशों में सोना रखने से ट्रांजैक्शन, स्वैप और ट्रेडिंग में सहूलियत मिलती है, लेकिन युद्ध, प्रतिबंध या डिप्लोमैटिक संकट की स्थिति में यह सोना असुरक्षित भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में भारत यदि अपने सोने को वापस देश में रखता है तो इमरजेंसी के समय अधिक लचीलापन बना रहता है।
इस फैसले से आम जनता को क्या फायदा होगा?
अब सवाल उठता है कि इस कदम का फायदा आम जनता को कैसे मिल सकता है? दरअसल, जब देश में अधिक मात्रा में फिजिकल गोल्ड स्टोर होता है तो आरबीआई के पास संकट की स्थिति में मार्केट में सप्लाई बढ़ाकर कीमतों को काबू करने का विकल्प होता है।
ये भी पढ़ें – 2026 से सभी दो-पहिया वाहनों पर ABS अनिवार्य | सरकार का फैसला
बीते कुछ वर्षों में सोने की कीमतों में जबरदस्त तेजी देखने को मिली है। इससे आम लोग जो पारंपरिक रूप से निवेश के लिए सोना खरीदते हैं, उनके लिए यह बहुत महंगा सौदा बन गया है। आरबीआई यदि अपनी होल्डिंग का प्रयोग करके बाजार में कीमतों को स्थिर रखता है, तो इससे आम निवेशकों और ग्राहकों को सीधा लाभ मिलेगा।

गोल्ड रिजर्व में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूती मिलेगी?
सोने का देश की कुल संपत्ति में महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसका सीधा संबंध मुद्रा की वैल्यू, आयात-निर्यात संतुलन और विदेशी निवेशकों के भरोसे से होता है। जब किसी देश के पास पर्याप्त मात्रा में सोना होता है, तो उसका ग्लोबल रेटिंग में असर पड़ता है।
RBI के अनुसार, बैंकिंग डिपार्टमेंट के पास जो सोना मौजूद है उसकी वैल्यू 31 मार्च 2024 को ₹2,74,717.27 करोड़ थी, जो बढ़कर 31 मार्च 2025 तक ₹4,31,624.80 करोड़ हो गई। यानी इसमें लगभग 57.12% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस वृद्धि के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं — नई खरीद (54.13 मीट्रिक टन), वैश्विक बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी और भारतीय रुपये की गिरती वैल्यू।
दुनिया में क्या कर रहे हैं दूसरे देश?
भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी जैसे बड़े देश भी लगातार अपने गोल्ड रिजर्व को बढ़ा रहे हैं। 2023 और 2024 के दौरान दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने रिकॉर्ड मात्रा में सोना खरीदा है। यह इस बात का संकेत है कि वैश्विक स्तर पर सोने को लेकर एक नई सोच बन रही है — जहां इसे महज ट्रेडिंग एसेट नहीं, बल्कि रणनीतिक सुरक्षा के रूप में देखा जा रहा है।
ये भी पढ़ें – बिना आधार पैन कार्ड नहीं मिलेगा: नया नियम 1 जुलाई 2025 से
क्या यह कदम आत्मनिर्भर भारत की दिशा में है?
निस्संदेह, RBI का यह फैसला भारत की आर्थिक नीति में एक मील का पत्थर है। यह निर्णय दर्शाता है कि भारत अब न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर बदलती परिस्थितियों को भली-भांति समझते हुए अपने संसाधनों को सुरक्षित करना भी जानता है।
देश में सोने का भंडारण बढ़ना केवल बैंकिंग या फाइनेंस की बात नहीं, बल्कि यह हर आम नागरिक की आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। जब देश आत्मनिर्भर होता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है, विदेशी दबाव कम होता है और जनता को लंबे समय में सीधा फायदा मिलता है।