Donald Trump is Back , Good News or Bad News for India? 2024

Donald Trump: डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पहले ऐसे प्रेसिडेंट बन गए हैं, जिन्हें किसी क्राइम के लिए कन्विक्ट किया गया हो। 26 नवंबर को इन्हें इनके गुनाहों की सजा सुनाई जानी है। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि इलेक्शन जीतने के बाद किसी प्रेसिडेंट को जेल जाना पड़े?
ट्रंप का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है इल्लीगल इम्मिग्रेशन लेकिन इनके प्रेसिडेंट बनने से इल्लीगल ही नहीं बल्कि लीगल इम्मिग्रेशन पर भी एक बहुत बड़ा असर पड़ेगा। लाखों इंडियन्स H1B वीज़ा पर अमेरिका में रहते हैं लेकिन ट्रंप की राय में ये H1B वीज़ा बहुत गलत और अनफेयर है।
Donald Trump is Back | Good News or Bad News for India 2024:
खबरों में आ रहा है की डोनाल्ड ट्रम्प की पॉलिसीस एक मिलियन से ज्यादा इंडियन्स को इफेक्ट करेंगी, जो ग्रीन कार्ड की लाइन में लगे हुए है। हाल ही में हुई अमेरिकन प्रेसिडेंशिएल इलेक्शन में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ी ही ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली। है। ना सिर्फ डोनाल्ड ट्रम्प। दोबारा से अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए है बल्कि उनकी रिपब्लिकन पार्टी दोनों अमेरिकन हॉउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट में मेजोरिटी जीती हुई दिख रही हैं
इसके अलावा 20 सालों में पहली बार ऐसा होता हुआ दिख रहा है कि एक रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसिडेंट पॉपुलर वोट भी जीत जाएंगे। जनता का पॉपुलर वोट मतलब वोट शेयर में मेजोरिटी कि ज्यादा परसेंटेज ऑफ़ अमेरिकन्स ने डोनाल्ड ट्रंप के लिए वोट किया। कमला हैरिस को वोट करने की जगह सुनने में बहुत अजीब लगेगा लेकिन अमेरिकन पोलिटिकल सिस्टम ही ऐसा है कि ऐसा कई बार होता है कि मेजोरिटी वोट शेयर किसी एक कैंडिडेट को मिलता है और प्रेसिडेंट कोई दूसरा कैंडिडेट बन जाता है।
2016 की इलेक्शंस में ऐसा ही कुछ हुआ था, जब हिलरी क्लिंटन को डोनाल्ड ट्रम्प से 28 लाख ज्यादा वोट्स मिले थे। वोट शेयर परसेंटेज देखो हिलरी क्लिंटन का 48.2% था। डोनाल्ड ट्रम्प का 46.1% था लेकिन फिर भी जीत हुई थी डोनाल्ड ट्रम्प की और वहीं प्रेसिडेंट बने थे।
ऐसा कैसे हो सकता है? आइए समझते हैं:
अमेरिका का ये अजीबो गरीब पोलिटिकल सिस्टम और जानते हैं की Donald Trump के दोबारा प्रेसिडेंट बनने का क्या इम्पैक्ट पड़ेगा इंडिया पर और बाकी दुनिया पर इंडिया में , हर 5 साल बाद इलेक्शंस होती है और कौन सी डेट को इलेक्शंस होती है? वो इलेक्शन कमिशन डिसाइड करता है लेकिन अमेरिका में ये प्रोसेसर हर 4 साल बाद रिपीट होता है और इनकी डेट भी सेट है। हर 4 साल बाद नवंबर महीने के पहले मंगलवार को अमेरिकन जनता अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट करने निकलती है।
लेकिन इस दिन ना सिर्फ शॉट में इन ए हॉउस और सीनेट करके पुकारा जाता है। अब जहाँ एक तरफ इंडिया में लोकसभा इलेक्शंस में तो जनता डाइरेक्टली वोट करती है, लेकिन राज्यसभा के मेंबर्स को जनता डाइरेक्टली नहीं चुनती है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में दोनों हॉउस और सीनेट के मेंबर्स को डाइरेक्टली जनता के द्वारा ही चुना जाता है। stock market
इन दोनों के चुनाव हर 2 साल में होते हैं, लेकिन सीनेट के जो मेंबर्स है उन्हें सेनेटर्स कहते हैं। उनका कार्यकाल 6 साल तक चलता है तो सारे के सारे एक साथ नहीं चुने जाते तो एक तिहाई सीनेट की इलेक्शंस होती है और 2 साल में जैसे की इस साल 34 सेनेटर्स को चुना जाना था।
तो इलेक्शन के दिन ज्यादातर दुनिया को लगता है कि अमेरिकन लोग सिर्फ अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट डालने जा रहे हैं, लेकिन असल में वो तीन वोट डालने जा रहे होते। पहला अपना प्रेसिडेंट चुनना, दूसरा अपना हॉउस रिप्रेजेंटेटिव चुनना और तीसरा अपना सीनेटर चुनना।
इन तीनों का प्रोसेस एक दूसरे से काफी अलग अलग है। पहले इनके हॉउस को देखते हैं। इनके हॉउस में टोटल 435 सीट्स होती है। हर स्टेट को उसकी आबादी के आधार पर अलग अलग सीट्स मिलती है। for example, न्यू यॉर्क जैसी जो स्टेट है उसकी 26 सीटें है उसमें। लेकिन अलास्का और मोंटाना जैसी जो स्टेटस है उनकी एक और दो ही सीटें है।
इवन दो ये स्टेटस साइज में काफी ज्यादा बड़ी है। न्यू यॉर्क स्टेटस लेकिन लैंड एरिया को नहीं पापुलेशन को देखा जाता है। मोंटाना में करीब 11 लाख लोग रहते हैं। न्यू यॉर्क में almost 2 करोड़ लोगों की आबादी हॉउस के चुनाव काफी डायरेक्ट होते हैं। हर स्टेट को कई डिस्ट्रिक्ट में बांट दिया जाता है और हर डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स एक रिप्रेजेंटेटिव को चुनते है।
कैंडिडेट्स लोकल लेवल पर कैंपेन करते हैं और लोकल इश्यूस की बातें करते हैं। आखिर में हर डिस्ट्रिक्ट में सबसे ज्यादा वोट्स पाने वाले कैंडिडेट की जीत होती है। ये कुछ भी अनयूज़ुअल चीज़ नहीं है और इन नतीजों से प्रेसिडेंशिएल इलेक्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लोग इन तीनों अलग अलग इलेक्शंस के लिए अलग अलग पार्टीस के कैंडिडेट्स के लिए वोट कर सकते हैं।
2024 के चुनाव से पहले रिपब्लिकन्स के पास हॉउस में 222 सीट्स थी। डेमोक्रेट्स के पास 213 थी। ऑलरेडी रिपब्लिकन्स के पास मेजोरिटी थी, क्योंकि 2 साल पहले जो इलेक्शंस हुई थी, 2022 की इलेक्शंस उनमें actually रिपब्लिकन पार्टी को ज्यादा सीटें मिली थी।
कई दिन लग जाते है काउंटिंग खत्म करने में। दूसरा सीनेट पर आए तो यहाँ टोटल में 100 मेंबर्स होते है। अमेरिका की हर स्टेट से दो सेनेटर्स को चुना जाता है। यहाँ पर कोई पापुलेशन नहीं देखी जाती।
अमेरिका में टोटल में 50 स्टेटस है और 50 time to 100 मेंबर्स। सिंपल कैलकुलेशन 2024 के चुनाव से पहले डेमोक्रेट्स के पास 51- 49 की मेजोरिटी थी। लेकिन हाल ही में वो इन 2024 के चुनाव के बाद अब ये मेजोरिटी पलट गई है।
और रिपब्लिकन्स के पास यहाँ भी मेजोरिटी आ गई है और ये एक ऐसी मेजोरिटी है जो किसी भी पोलिटिकल पार्टी के लिए बहुत जरूरी होती है क्योंकि सीनेट के पास ही पावर है फेडरल जजेस और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिसेस को अप्पोइंट करने की। हालांकि ज्यूडिशियरी को सही मायने में इंडिपेंडेन्ट होना चाहिए पोलिटिकल सिस्टम से,
लेकिन पिछले कुछ सालों से अमेरिका में इस बात पर बहुत कंट्रोवर्सी हुई है कि रिपब्लिकन पार्टी ने अपने लोगों को सुप्रीम कोर्ट में बिठा दिया है और उसकी वजह से ऐसे फैसले पास हो रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
Donald Trump के राष्ट्रपति बनने का भारत पर प्रभाव कई तरीकों से हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह होगा कि उनकी नीतियाँ एक मिलियन से अधिक भारतीयों को प्रभावित करेंगी, जो ग्रीन कार्ड की लाइन में हैं। ट्रंप का सबसे बड़ा मुद्दा अवैध प्रवासन रहा है, और उनके राष्ट्रपति बनने से न केवल अवैध, बल्कि कानूनी प्रवासन पर भी बड़ा असर पड़ेगा। वे एच-1बी वीजा को गलत और अन्यायपूर्ण मानते हैं, जो लाखों भारतीयों के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
इसके अलावा, Donald Trump की नीतियों का भारत के साथ व्यापारिक संबंधों पर भी असर पड़ सकता है, हालांकि इस पर विशेष जानकारी नहीं दी गई है। कुल मिलाकर, ट्रंप का पुनः राष्ट्रपति बनना भारत के लिए कुछ चुनौतियाँ और संभावित अवसर लेकर आ सकता है।
अमेरिकी चुनावों में पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट के बीच का अंतर महत्वपूर्ण है।
1. पॉपुलर वोट: यह वह कुल वोट हैं जो सभी मतदाता किसी उम्मीदवार को देते हैं। यह वोट सीधे जनता द्वारा डाले जाते हैं और यह दर्शाता है कि कितने प्रतिशत लोगों ने किसी विशेष उम्मीदवार का समर्थन किया। उदाहरण के लिए, 2016 के चुनावों में हिलरी क्लिंटन को डोनाल्ड ट्रंप से 28,00,000 अधिक पॉपुलर वोट मिले थे, लेकिन फिर भी ट्रंप राष्ट्रपति बने क्योंकि उन्हें अधिक इलेक्टोरल वोट मिले।
2. इलेक्टोरल वोट: अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से होता है। प्रत्येक राज्य को उसके जनसंख्या के आधार पर इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, और कुल 538 इलेक्टोरल वोट होते हैं। एक उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट की आवश्यकता होती है। इलेक्टोरल वोटों का वितरण इस प्रकार होता है कि छोटे राज्यों को भी कुछ इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, जिससे पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट के बीच असमानता उत्पन्न हो सकती है।
इस प्रकार, पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट के बीच का अंतर यह है कि पॉपुलर वोट सीधे मतदाताओं द्वारा डाले जाते हैं, जबकि इलेक्टोरल वोट राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा निर्धारित होते हैं, जो अंततः राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। US Presidential Election Results 2024 – BBC News