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Cloud Seeding क्या है? जानिए इसके फायदे और जोखिम 2025

वर्तमान समय में, जब जलवायु परिवर्तन, जल संकट और मानसून की अनिश्चितता जैसी समस्याएँ विकराल रूप धारण कर चुकी हैं, कृत्रिम वर्षा या क्लाउड सीडिंग एक संभावित समाधान के रूप में सामने आई है। यह तकनीक प्राकृतिक वर्षा की प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से प्रेरित करती है, जिससे जल उपलब्धता में वृद्धि की जा सके। यह न केवल कृषि और जल संसाधनों को स्थिरता प्रदान करती है, बल्कि वायुमंडलीय प्रदूषण और सूखे जैसी आपदाओं को भी नियंत्रित करने की क्षमता रखती है।

कृत्रिम वर्षा (Cloud Seeding) क्या है?

Cloud Seeding, जिसे कृत्रिम वर्षा के रूप में जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक विधियों द्वारा बादलों में विशिष्ट रसायनों का छिड़काव किया जाता है ताकि जलवाष्प संघनित होकर वर्षा में परिवर्तित हो सके। इस तकनीक का विकास 20वीं सदी के मध्य में हुआ और तब से यह कई देशों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों जैसे जल प्रबंधन, कृषि सहायता, और मौसम नियंत्रण के लिए अपनाई जा रही है। यह तकनीक उस स्थिति में सबसे अधिक कारगर होती है जब बादल तो मौजूद होते हैं लेकिन उनमें पर्याप्त नमी नहीं होती कि वे स्वाभाविक रूप से वर्षा कर सकें।

क्लाउड सीडिंग के प्रकार

Cloud Seeding को तीन प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

स्टैटिक क्लाउड सीडिंग: यह प्रक्रिया बादलों में संघनन नाभिक उत्पन्न करने पर आधारित होती है। सिल्वर आयोडाइड जैसे पदार्थों को बादलों में छोड़ा जाता है, जो सूक्ष्म जल वाष्प को आकर्षित करके उन्हें जल बूँदों में बदल देते हैं।
डायनेमिक क्लाउड सीडिंग: इस विधि में उद्देश्य केवल संघनन नहीं बल्कि पूरे बादल की संरचना और गतिशीलता को बदलना होता है। इसमें उच्च मात्रा में सीडिंग एजेंट्स का छिड़काव किया जाता है जिससे हवा की गतिशीलता बढ़े और वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हो।
हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: इसमें ऐसे कणों का उपयोग किया जाता है जो जलवाष्प को आकर्षित कर जलबूंदों का आकार बढ़ा देते हैं, जिससे भारी बूंदें बनती हैं और वर्षा की संभावना बढ़ती है। नमक आधारित कण इस विधि में सामान्यतः उपयोग किए जाते हैं।

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Cloud Seeding क्या है? जानिए इसके फायदे और जोखिम 2025

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया

Cloud Seeding की एक सुव्यवस्थित वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है जिसमें कई चरण होते हैं:

मौसम का विश्लेषण और उपयुक्त बादलों की पहचान: मौसम विज्ञानियों द्वारा उपग्रह चित्रों, रडार डाटा और सैद्धांतिक मॉडल के माध्यम से ऐसे बादलों की पहचान की जाती है जो सीडिंग के लिए उपयुक्त हैं।
रसायनों का चयन और तैयार करना: बादलों के प्रकार, ऊँचाई और तापमान के आधार पर उपयुक्त सीडिंग एजेंट (जैसे सिल्वर आयोडाइड, नमक, या ड्राई आइस) का चयन किया जाता है।
रसायनों का वितरण: यह विमानों, हेलिकॉप्टरों, या ज़मीनी जनरेटरों की सहायता से किया जाता है। विमान बादलों के ऊपर या भीतर उड़ते हैं और वहां पर नियंत्रित मात्रा में सीडिंग एजेंट छोड़ते हैं।
संभावित प्रभाव और निगरानी: सीडिंग के बाद, रडार और मौसम उपग्रहों की सहायता से वर्षा की उपस्थिति और तीव्रता की निगरानी की जाती है।

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Global perspective में क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक वैश्विक तकनीक बन चुकी है और विभिन्न देश इसे अपनी जलवायु आवश्यकताओं के अनुसार प्रयोग कर रहे हैं:

संयुक्त राज्य अमेरिका: यहां विशेष रूप से कैलिफोर्निया और नेवादा जैसे क्षेत्रों में जलाशयों को भरने और बर्फबारी बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग की जाती है। इसके अलावा टेक्सास और कोलोराडो जैसे राज्यों में भी यह तकनीक वर्षा सुधार के लिए उपयोग की जाती है।
चीन: बीजिंग ओलंपिक्स (2008) के समय चीन ने बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया था ताकि आयोजन के दौरान बारिश न हो। इसके अलावा कृषि में सहायता के लिए भी यह तकनीक अपनाई गई है। चीन दुनिया के उन देशों में अग्रणी है जो क्लाउड सीडिंग पर सबसे अधिक निवेश कर रहे हैं।
संयुक्त अरब अमीरात (UAE): यहाँ जल संकट से निपटने के लिए वर्ष भर क्लाउड सीडिंग की जाती है। UAE में इस पर अत्यधिक निवेश किया गया है और यहाँ के नेशनल सेंटर फॉर मीटिओरोलॉजी द्वारा नियमित अभियानों का संचालन किया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया: मुर्रे-डार्लिंग बेसिन में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग की परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। तस्मानिया राज्य में इस तकनीक का उपयोग लंबे समय से सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

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भारत में क्लाउड सीडिंग की पहल

भारत में Cloud Seeding का इतिहास 1950 के दशक से आरंभ होता है। समय-समय पर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में सूखे से निपटने के लिए इस तकनीक को अपनाया गया। वर्ष 2017 में कर्नाटक सरकार ने ‘वर्षाधारी’ नामक प्रोजेक्ट लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा को बढ़ावा देना था। मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे क्षेत्रों में यह विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हुआ। Sources: Cloud Seeding – Wikipedia

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क्लाउड सीडिंग से जुड़ी चुनौतियाँ

हालाँकि क्लाउड सीडिंग को संभावित समाधान माना जाता है, लेकिन इसके साथ कुछ गंभीर चुनौतियाँ और विवाद भी जुड़े हैं:

पर्यावरणीय प्रभाव: सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों का प्रयोग पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। इसकी अधिकता से मिट्टी, जल और हवा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
प्राकृतिक असंतुलन: वर्षा के पैटर्न में बदलाव दूसरे क्षेत्रों में सूखा या अतिवृष्टि उत्पन्न कर सकता है।
उच्च लागत: सीडिंग प्रक्रिया में हवाई जहाज, रसायन, और तकनीकी स्टाफ की आवश्यकता होती है जिससे यह तकनीक महंगी साबित होती है।
सीमित सफलता: यह तकनीक तभी काम करती है जब बादल पहले से ही मौजूद हों और उसमें नमी की मात्रा पर्याप्त हो। बिना बादलों के क्लाउड सीडिंग असंभव है। Artificial Rain – Wikipedia

क्लाउड सीडिंग तकनीक जहां जल संकट और सूखा जैसी आपदाओं से निपटने में सहायक हो सकती है, वहीं इसके दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण और सतत निगरानी आवश्यक है। विश्व के कई देश इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसका संतुलित और वैज्ञानिक उपयोग ही इसके दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित कर सकता है। भारत जैसे देश में, जहां वर्षा पर कृषि की निर्भरता अधिक है, वहां यह तकनीक एक उम्मीद की किरण बन सकती है—यदि इसे पारदर्शिता, सुरक्षा और वैज्ञानिकता के साथ लागू किया जाए। Sources: Artificial Rain 

(FAQs)

Q1: Cloud Seeding से निश्चित रूप से बारिश होती है? A1: नहीं, यह प्रक्रिया केवल बारिश की संभावना को बढ़ाती है, लेकिन सफलता मौसम की स्थिति पर निर्भर करती है।

Q2: Cloud Seeding सुरक्षित है? A2: सामान्यत: यह सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता बनी रहती है।

Q3: Cloud Seeding की लागत कितनी होती है? A3: इसकी लागत परियोजना के आकार, प्रयुक्त तकनीक, और भूगोलिक क्षेत्र पर निर्भर करती है। भारत में औसतन एक क्लाउड सीडिंग मिशन की लागत करोड़ों रुपये तक हो सकती है।

Q4: भारत में किन राज्यों में क्लाउड सीडिंग की गई है? A4: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में क्लाउड सीडिंग की परियोजनाएँ संचालित की गई हैं।

Q5: क्या Cloud Seeding से मौसम चक्र पर असर पड़ता है? A5: हाँ, यह तकनीक प्राकृतिक वर्षा चक्र को प्रभावित कर सकती है जिससे पर्यावरण और अन्य क्षेत्रों पर अप्रत्याशित असर हो सकता है।

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