भारत में सैटेलाइट इंटरनेट की दौड़ में एलन मस्क की Starlink और जेफ बेजोस की Project Kuiper की एंट्री से बड़ा बदलाव आने वाला है। जानिए इसके फायदे, लागत, और कंपनियों की तैयारी विस्तार से।
इंटरनेट का नया युग शुरू
2016 में जैसे जियो ने भारत में सस्ते इंटरनेट से टेलीकॉम क्रांति ला दी थी, वैसे ही अब 2025 में सैटेलाइट इंटरनेट एक नई क्रांति की ओर इशारा कर रहा है। एलन मस्क की Starlink को भारत में मंजूरी मिल चुकी है, और अब जेफ बेजोस की Amazon की Project Kuiper भी अनुमति की दहलीज पर है। दोनों दुनिया के सबसे अमीर लोगों की कंपनियों का भारत में उतरना दिखाता है कि सैटेलाइट इंटरनेट भारत का भविष्य बनने जा रहा है।
सैटेलाइट इंटरनेट क्या होता है?
सैटेलाइट इंटरनेट एक वायरलेस इंटरनेट सेवा है जो पृथ्वी की कक्षा में स्थित उपग्रहों के माध्यम से काम करती है। इसमें मोबाइल टावर या फाइबर ऑप्टिक केबल की जरूरत नहीं होती।
प्रमुख विशेषताएं:
- केबल और टावर की जरूरत नहीं
- दूर-दराज के इलाकों में भी कवरेज
- तेज़ डेटा स्पीड और कम लेटेंसी
उदाहरण:
मान लीजिए आप लद्दाख या रेगिस्तान में किसी दूरस्थ गांव में हैं जहां मोबाइल नेटवर्क नहीं है। ऐसे में Starlink की डिश लगाकर आप आसानी से YouTube वीडियो अपलोड कर सकते हैं या ऑनलाइन क्लास ले सकते हैं।
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भारत में कौन-कौन सी कंपनियां दौड़ में हैं?
1. Starlink (Elon Musk – SpaceX):
- भारत में GMPCS लाइसेंस प्राप्त
- Jio और Airtel से साझेदारी
- मुंबई, पुणे और इंदौर में 3 गेटवे स्थापित करने की योजना
- जनवरी 2024 तक 7000 से अधिक सैटेलाइट्स लो अर्थ ऑर्बिट में
2. Project Kuiper (Jeff Bezos – Amazon):
- DOT को लाइसेंस के लिए आवेदन किया
- साल के अंत तक सेवा शुरू करने का लक्ष्य
- 10 गेटवे स्टेशन, मुंबई और चेन्नई में 2 डेटा सेंटर
- 3200+ सैटेलाइट्स तैनात करने की योजना
3. Eutelsat OneWeb:
- भारत सरकार की मंजूरी मिल चुकी
- 648 सैटेलाइट्स पहले ही तैनात
- भागीदारी: Bharti Global और UK Government
4. Reliance Jio-SES JV:
- SES लक्ज़मबर्ग आधारित कंपनी
- भारत में Starlink से मुकाबले की तैयारी
5. Globalstar:
- अमेरिका की कंपनी
- भारत में लाइसेंस के लिए IN-SPACe में आवेदन
सैटेलाइट इंटरनेट की तकनीक कैसे काम करती है?
- Dish Installation: यूज़र के घर या ऑफिस में एक डिश लगती है जो सीधे सैटेलाइट से जुड़ती है।
- Gateway Station: यह वो स्टेशन होते हैं जो सैटेलाइट और इंटरनेट सर्वर के बीच पुल का काम करते हैं।
- Point of Presence (PoP): ये हाई-स्पीड डेटा प्रोसेसिंग सेंटर होते हैं जो यूज़र की रिक्वेस्ट को तेज़ी से प्रोसेस करते हैं।
भारत में क्यों मच रही है होड़?
- बड़ी जनसंख्या: 140 करोड़ से अधिक लोग
- कम इंटरनेट कवरेज: लगभग 47% लोग आज भी इंटरनेट से वंचित (Source: ET)
- ग्रामीण मार्केट: गांवों में इंटरनेट की भारी मांग
- शिक्षा, टेलीमेडिसिन और एंटरटेनमेंट: सभी क्षेत्रों में बड़ी उपयोगिता
आपको क्या फायदा होगा?
- दूरदराज के क्षेत्रों में कवरेज
- ऑनलाइन क्लास, टेलीमेडिसिन, E-Governance
- वीडियो कॉलिंग, स्ट्रीमिंग और गेमिंग में बेजोड़ अनुभव
- इमरजेंसी और डिजास्टर में भी इंटरनेट संभव

गांव-देहात और पहाड़ी इलाकों के लिए वरदान
भारत में अभी भी लाखों गांव ऐसे हैं जहां या तो इंटरनेट है ही नहीं, या फिर बेहद धीमा चलता है। कई बार मोबाइल नेटवर्क तक सही से काम नहीं करता। ऐसे में सैटेलाइट इंटरनेट उन लोगों के लिए नई रोशनी की किरण बनकर सामने आ रहा है। – Starlink & Kuiper Approval
मान लीजिए कोई छात्र लद्दाख, अरुणाचल या झारखंड के दूर-दराज गांव में पढ़ाई कर रहा है। उसके पास स्मार्टफोन है लेकिन नेट नहीं है, तो ऑनलाइन क्लासेस कैसे लेगा? यहां पर Starlink जैसी सेवा उसकी मदद कर सकती है। छत पर एक छोटा-सा एंटेना लगेगा और आसमान में घूम रहे उपग्रह से सीधे इंटरनेट मिलेगा। यही बात किसी किसान, दुकानदार या हेल्थ वर्कर पर भी लागू होती है।
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यह कैसे काम करता है?
बहुत लोग सोचते हैं कि इंटरनेट तो तारों से आता है, तो सैटेलाइट से कैसे आएगा?
असल में, Starlink और Kuiper जैसे सिस्टम में हजारों छोटे-छोटे उपग्रह होते हैं जो धरती के ऊपर 500–2000 किमी की दूरी पर लगातार घूमते रहते हैं। आपके घर पर लगा डिश एंटेना सीधा इन उपग्रहों से सिग्नल पकड़ता है और वाई-फाई के जरिए आपके मोबाइल या कंप्यूटर में इंटरनेट देता है। इसमें किसी मोबाइल टावर या फाइबर केबल की जरूरत नहीं होती।
कनेक्शन कैसे मिलेगा?
भारत में जैसे ही ये सेवाएं लॉन्च होती हैं, आपको Starlink या Kuiper की वेबसाइट पर जाकर रजिस्टर करना होगा। वे आपको एक डिश एंटेना, वाई-फाई राउटर और इंस्टॉलेशन किट भेजेंगे। आप चाहें तो खुद भी इंस्टॉल कर सकते हैं या किसी टेक्नीशियन से मदद ले सकते हैं।
Starlink की वेबसाइट पर एक ‘Check Your Location’ नाम का फीचर होता है, जिससे आप यह जांच सकते हैं कि आपके पते पर सेवा उपलब्ध है या नहीं।
क्या यह सस्ता होगा?
यह बात तो तय है कि शुरुआत में यह सेवा महंगी हो सकती है, खासकर आम आदमी के लिए। लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ेगी और ज्यादा कंपनियां बाज़ार में आएंगी, कीमतें कम होंगी। भारत सरकार भी इसमें सब्सिडी या स्कीम के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किफायती प्लान ला सकती है।
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एक और बात – अगर किसी गांव में 100 लोग मिलकर एक कनेक्शन लगवाएं और सभी लोग मिलकर उपयोग करें, तो खर्च बहुत कम हो सकता है।

भारत के लिए बड़ा मौका
भारत जैसे देश में, जहां गांवों की संख्या शहरों से कहीं ज्यादा है, और डिजिटल इंडिया का सपना हर कोने में पहुंचाना है — वहां सैटेलाइट इंटरनेट एक गेम चेंजर साबित हो सकता है। यह न सिर्फ इंटरनेट देगा, बल्कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और आपदा प्रबंधन में भी क्रांति ला सकता है।
सेटेलाइट इंटरनेट की लागत कितनी होगी?
Starlink की संभावित लागत (भूटान के आधार पर अनुमान):
प्लान | स्पीड | अनुमानित कीमत (INR) |
---|---|---|
Residential Light | 23-100 Mbps | ₹3000 प्रति माह |
Residential Plus | 25-110 Mbps | ₹4200 प्रति माह |
नोट: भारत में विदेशी डिजिटल सेवाओं पर 30% टैक्स लगता है, जिससे यह कीमत बढ़कर ₹3500-₹5500 हो सकती है।
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कनेक्शन लेने की प्रक्रिया:
- Starlink वेबसाइट पर जाएं
- लोकेशन एंटर करें
- किट बुक करें (डिश + राउटर)
- ऐप से इंस्टॉलेशन में मदद लें
FAQs:
Q1. क्या Starlink सेवा पूरे भारत में उपलब्ध होगी?
Starlink की योजना है कि वह पहले चरण में भारत के दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देगी।
Q2. क्या यह ब्रॉडबैंड से बेहतर है?
ब्रॉडबैंड जहां पहुंच नहीं पाता वहां सैटेलाइट इंटरनेट ही विकल्प है। गति और कवरेज में यह कई बार ब्रॉडबैंड से बेहतर हो सकता है।
Q3. क्या इसकी स्पीड पर्याप्त होगी?
Starlink और Kuiper की स्पीड 23 Mbps से 1000 Mbps तक हो सकती है, जो HD वीडियो और गेमिंग के लिए भी पर्याप्त है।
Q4. क्या यह सस्ता होगा?
अभी की तुलना में महंगा हो सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों के लिए यह सबसे उपयुक्त समाधान है।
Q5. क्या मोबाइल में भी ये काम करेगा?
फिलहाल नहीं, लेकिन Wi-Fi राउटर के जरिए मोबाइल, लैपटॉप आदि से कनेक्ट किया जा सकता है।
भारत में इंटरनेट की पहुंच को लेकर एक नया युग शुरू हो रहा है। Starlink और Project Kuiper जैसी ग्लोबल कंपनियों की एंट्री से गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में भी हाई स्पीड इंटरनेट एक हकीकत बनने जा रहा है। इससे न सिर्फ लोगों की जीवनशैली बदलेगी बल्कि डिजिटल इंडिया की राह भी मजबूत होगी। BBC Science – LEO Satellites Explained