एक समय था जब हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे मंचों पर नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप एक-दूसरे की तारीफों के पुल बांधा करते थे। मोदी ट्रंप को “सच्चा दोस्त” कहते थे और ट्रंप मोदी को “महान नेता” और “सख्त सौदेबाज” बताते थे।
इन दोनों नेताओं के बीच कई समानताएं थीं—नेशनलिज्म, स्ट्रॉन्ग लीडरशिप, और देश को सर्वोपरि रखना। लेकिन क्या यही समानताएं अब दूरी का कारण बन रही हैं?
भारत बनाम ट्रंप: हाल के विवाद क्या हैं?
- H1B वीजा और ट्रेड टैक्स पर तनातनी
ट्रंप ने भारत पर “बहुत ज्यादा टैक्स” वसूलने का आरोप लगाया। - इंडिया-पाकिस्तान वार और नोबेल की चाहत
ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाक युद्ध को रोका, लेकिन भारत ने उनके दावे को नकार दिया। इससे ट्रंप की छवि पर असर पड़ा। - Apple फैक्ट्री विवाद
हाल ही में ट्रंप ने Apple के CEO टिम कुक से कहा कि “भारत में फैक्ट्री मत बनाओ”, जिससे साफ हुआ कि ये सिर्फ व्यापारिक टिप्पणी नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक संदेश था।
2016 से 2020: दोस्ती की शुरुआत और शिखर पर पहुंचना
डोनाल्ड ट्रंप के 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के बीच संबंधों ने नई ऊंचाई छुई। मोदी और ट्रंप के बीच व्यक्तिगत गर्मजोशी और सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे की सराहना ने संकेत दिया कि दोनों नेताओं के बीच मजबूत “केमिस्ट्री” है।
- 2019 में ह्यूस्टन में हुए Howdy Modi कार्यक्रम में ट्रंप ने मोदी के साथ मंच साझा किया। यह अमेरिकी धरती पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए ऐतिहासिक स्वागत था।
- इसके जवाब में 2020 में Namaste Trump कार्यक्रम के दौरान अहमदाबाद में ट्रंप और उनके परिवार का भव्य स्वागत हुआ।
इन आयोजनों ने न केवल दोनों नेताओं की मित्रता को दर्शाया, बल्कि द्विपक्षीय संबंधों को भी मजबूती दी।
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2021-2024: जो बाइडन के कार्यकाल में संतुलन की राजनीति
जब 2021 में जो बाइडन राष्ट्रपति बने, तो भारत-अमेरिका संबंधों में स्थायित्व तो रहा लेकिन मोदी और बाइडन के व्यक्तिगत समीकरण ट्रंप जितने गर्मजोश नहीं रहे। इस बीच मोदी ने अपने रणनीतिक हितों के अनुसार रूस, चीन और पश्चिमी देशों के साथ संतुलन बनाकर चलने की नीति अपनाई।
ट्रंप ने इस दौरान कई बार मोदी सरकार की नीतियों की अप्रत्यक्ष रूप से तारीफ की, विशेषकर आर्थिक विकास और “मजबूत नेतृत्व” को लेकर। इससे साफ था कि अगर ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनते हैं तो मोदी के साथ पुराने समीकरण फिर जीवित हो सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की नाराजगी की असली वजह क्या है?
1. नोबेल प्राइज़ की अधूरी ख्वाहिश
उत्तर कोरिया से दोस्ती और भारत-पाक मध्यस्थता—दोनों ही प्रयास असफल रहे। भारत ने कश्मीर पर अमेरिकी हस्तक्षेप को पूरी तरह खारिज किया।
2. ग्लोबल मंच पर भारत की बढ़ती ताकत
भारत अब सिर्फ एक विकासशील देश नहीं रहा। Apple जैसी बड़ी कंपनियां भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बना रही हैं, जिससे अमेरिका को खतरा महसूस हो रहा है।
3. भारत की आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र नीति
भारत अब “अमेरिका के निर्देशों पर चलने वाला” देश नहीं रहा। चाहे डिफेंस हो, टेक्नोलॉजी या डिप्लोमेसी, भारत अपने रास्ते खुद चुन रहा है।
4. अमेरिकी हथियारों की बेइज्जती?
F-16 जैसे अमेरिकी हथियारों का भारत द्वारा गिराया जाना अमेरिका की डिफेंस इंडस्ट्री की प्रतिष्ठा पर चोट है। इससे ट्रंप की डिफेंस लॉबी भी नाखुश हो सकती है।
क्या भारत चीन बनता जा रहा है ट्रंप की नजरों में?
भारत अब उसी रास्ते पर है जिस पर कभी चीन था—मैन्युफैक्चरिंग हब, टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता, और स्वतंत्र विदेश नीति। ट्रंप के “भारत अपना ख्याल खुद रख सकता है” वाले बयान में सिर्फ नाराजगी नहीं, बल्कि एक तरह का भय भी छिपा है।
भारत को अब क्या करना चाहिए?
- अमेरिका के साथ रिश्ते संतुलन में रखने की जरूरत है।
- आत्मनिर्भर भारत को और मजबूत करना होगा।
- वैश्विक मंचों पर अपनी स्वतंत्रता और प्रभुत्व को बनाए रखना होगा।
भारत को ट्रंप जैसे नेताओं की पॉलिटिक्स को समझना और उसी हिसाब से प्रतिक्रिया देनी होगी।
दोस्ती से दुश्मनी का सफर या सिर्फ राजनीति का खेल?
डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की दोस्ती अब एक जटिल मोड़ पर है। ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति और भारत की “आत्मनिर्भरता” के रास्ते एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। क्या ये टकराव स्थायी दुश्मनी में बदलेगा या सिर्फ एक राजनीतिक फेज है? यह आने वाले चुनाव और भारत की रणनीति तय करेंगे।